2025-04-04 17:54:51
नित्य तीज-त्योहार का, यहांँ मनाते हर्ष। उत्सव-धर्मी देश है, अपना भारत वर्ष।। घट-घट में भी राम हैं, घर-घर में भी राम। राम हमारी अर्चना, राम ही तीर्थ-धाम।। सीता के भी राम हैं, शबरी के भी राम। तुलसी और कबीर के, सबके अपने राम।। गूंँज रहा घर-गांँव में, रघुपति राजा राम। आज हुआ है राम से, बड़ा राम का नाम। कृतकृत्य हम हुए सदा, लेकर जिसका नाम। रोम-रोम में वह रमा, समझ उसी को राम।। हुए राममय अब सभी, क्या दक्षिण, क्या वाम। लगे समूचा देश अब, भव्य अयोध्या धाम।। करवट बदली देश ने, जागा सोया जोश। राम-नाम का विश्व में, हुआ पुनः जयघोष।। जब-जब पश्चाताप से, जीवन हुआ हराम। मरा-मरा के मंत्र से, तब-तब उपजे राम।। बिना तपे सोना बना, कब कुंदन अभिराम। वन-वन भटके तब कहीं, राम बने श्रीराम।