2024-08-10 16:35:47
आस्तिक बाबा मंदिरi: सावन माह की चतुर्दशी को आस्तिक बाबा मंदिर का विशालकाय मेला लगता है. इसमें रायबरेली जनपद समेत आसपास के जिलों के भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. लोगों का मानना है कि नागपंचमी वाले दिन यहां पर खंभिया चढ़ाने से सांपों के भय से मुक्ति मिलने के साथ ही उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यहां खंभिया लकड़ी का बनी एक चीज होती है, जिसके कोने काटकर बीच में कील ठोकी जाती है. /रायबरेली लालूपुर: 9 अगस्त को नाग पंचमी का त्यौहार है. ऐसे में रायबरेली जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक ऐसा मंदिर है, जिसका नाग पंचमी के त्यौहार से खास महत्व है. इसकी कहानी आपको आश्चर्यचकित कर देगी. इसके बारे में लोगों की अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं हैं. साथ ही लोगों का मानना है कि यह मंदिर महाभारत काल से ताल्लुक रखता है. लोगों में मान्यता है कि यदि किसी भी व्यक्ति को सांप ने काट लिया है, तो इस मंदिर में पहुंचने मात्र से ही वह सही हो जाता है. उसे किसी प्रकार के इलाज की जरूरत नहीं पड़ती है. धार्मिक मान्यता यह भी है कि आस्तिक बाबा का नाम लेने मात्र से ही आपको सांपों से भय नहीं लगेगा. सावन माह की चतुर्दशी को आस्तिक बाबा मंदिर का विशालकाय मेला लगता है. इसमें रायबरेली जनपद समेत आसपास के जिलों के भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. लोगों का मानना है कि नागपंचमी वाले दिन यहां पर खंभिया चढ़ाने से सांपों के भय से मुक्ति मिलने के साथ ही उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. यहां खंभिया लकड़ी का बनी एक चीज होती है, जिसके कोने काटकर बीच में कील ठोकी जाती है. नागपंचमी का है खास महत्व लोकल 18 से बात करते हुए आस्तिक बाबा मंदिर के पुजारी अमित तिवारी ने बताया कि आस्तिक मंदिर पर नाग पंचमी के 1 दिन पहले लाखों की संख्या में श्रद्धालु इसलिए आते हैं. क्योंकि, उन्हें साल भर सांप के कोप का शिकार न होना पड़े. साथ ही वह बताते हैं कि हमारे पूर्वज बताते थे कि इस मंदिर से पांडवों का भी जुड़ाव रहा है. एक बार राजा परीक्षित जंगल में शिकार करने गए. जहां पर उनके बाण से एक हिरण घायल हो गया. लेकिन, वह घायल हिरण उनके सामने से गायब हो गया. तो राजा ने आसपास देखा तो उन्हें पास में बैठे एक ऋषि दिखाई दिए, जिनसे उन्होंने उसके बारे में जानकारी ली. जब उन्होंने कुछ नहीं बताया तो राजा परीक्षित ने उनके गले में एक मृत सांप पहना दिया. तभी वहीं पर मौजूद उनके पुत्र श्रृंगी ने यह सब देखा. तो उन्होंने राजा को श्राप दे दिया कि तुम्हें एक सप्ताह के भीतर सबसे जहरीला सर्प तक्षक डस लेगा. जब यह जानकारी राजा के पुत्र जन्मेजय को हुई तो उन्होंने सांपों को भस्म करने के लिए विशाल काय यज्ञ किया. इसमें सांप भस्म होने लगे तभी आस्तिक महाराज ने यज्ञ को बंद करवा कर तक्षक को बचा लिया था. तब से ऐसा माना जाता है कि आस्तिक महाराज का नाम लेने से है लोगों को सांप से डर नहीं लगता है.