2024-09-04 19:49:47
तुमने जब से खुदा माना उसे, बस सब कुछ मांगते गए हैं उससे, कभी पलटकर भी नही देखा उसको, जिसने मिलायी पूरी कायनात तुमसे. ये माना की उसकी जरूरत थोड़ी कम थी, पर फितरत में वो आगे था सबसे वो देना जानता है बिल्कुल गोविंद की तरह लेकिन तुमने आंका किसी कमतर से ऐसे. यूं ही नही दर्जा दिया गुरु का उसे , जिसने लघु को दीर्घ बनाया हो जैसे वो हर जिंदगी का मकसद भी है, मखतब भी वही, जो हर कदम चले अपने दम से. उस दिए की रोशनी में नहाए हैं जब से मिला हैं जवाब मैं कौन है तबसे. बड़ा मुश्किल है ढूंढना जहां में बेहतर इससे कोई खैर खिदमतगार हो भला, कोन किससे.