2024-08-10 16:26:26
भिण्ड। जानकारी के अनुसार जब हम सब बच्चे थे तब नाग पंचमी को धूम अलग होती थी। अब जब हम चौथेपन में आ गए हैं तो नाग पंचमी कब आती है और कब चलीजाती है,इसका पता ही नहीं चलता। इसकी वजह नाग नहीं बल्कि हम है। नाग तो आज भी जहाँ-तहाँ मिल सकते हैं,लेकिन सरकार ने ही नाग पूजा को प्रतिबंधित कर दिया है। नागों को पकड़ने वाला एक पूरा समाज अब विलुप्त हो गया है। नागों से खेलने -खाने वाले इस समुदाय का अब कोई आता-पता नहीं है। आज भी नाग पंचमी थी लेकिन हमें दूर-दूर तक बीन की आवाज नहीं सुनाई दी जो नाग पंचमी का सिग्नेचर मानी जाती थी ।यानि हम लगातार कुछ न कुछ खोते ही जा रहे हैं।आप सोच रहे होंगे कि आज देश में जब वक्फ विधेयक, विनेश फोगाट,नीरज चौपड़ा और बांग्लादेश में हिन्दुओं पर उत्पीड़न की बात हो रही है तब मैं ये नाग-पुराण लेकर कहाँ बैठ गया ? आपका सवाल जायज है। नाजायज तो वे सवाल हैं जो आजकल विपक्ष की और से संसद में किये जाते है। नाजायज शायद वे सवाल हैं जो राज्य सभा में सभापति जयदीप धनकड़ को रुला देते हैं। लोकसभा में ओम बिरला जी को विचलित कर देते हैं। हमें न नाग की बात करना चाहिए और न नागिन की हमें न सपेरों की बात करना चाहिए और न उनकी बीन की। उस बीन की जिसे सुनकर मेरा तेरा,हम सबका तन और मन डोलने लगता था। हमारी दादी कहतीं थीं कि पूरी धरती नागों से भरी है। वे यदि सबके सब जमीन के बाहर आ जाएँ तो मनुष्य प्रजाति का जीना दूभर हो जाए। वे कहतीं थीं कि नाग हमारे देवता हैं इसलिए उन्हें पूजना ही चाहिए। हम हर उस व्यक्ति की,शक्ति की पूजा करते हैं जिनसे हमें खतरा होता है या जो हमारे ऊपर कृपा बरसाती हैं। हमें जब नाग नहीं मिलते तो हम दीमकों के घर को नागों का घर समझकर पूज लेते हैं इन्हें बामी कहा जाता है। धारणा है की नाग इन्हीं के भीतर बिल बनाकर रहते हैं।सावन का महीना हो और पवन शोर करती हो तभी शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पूजा की जाती है । नागों में भी मनुष्यों की तरह जातियां-प्रजातियां होतीं है। हमें बचपन में बतया गया था कि हम आज के दिन उन 12 नागों की पूजा करते हैं जो भगवान भोलेनाथ को प्रिय थे। इन के नाम आप शायद न जानते हों इसलिए बताये देता हूँ कि ये -अनंत, वासुकि,शेष ,पद्मनाभ,कम्बल ,षड्गपाल,धृटराष्ट्र ,तक्षक और कालिया ,तक्षक,शंख ,और कुलिक प्रमुख है। ये नाग देवता हैं। इनमें शेषनाग सबसे विशाल हैं जो भगवान विष्णु की सेवा करते है। मुझे हैरानी है कि इनमें ऐनकोंडा का नाम कहीं नहीं है।मुमकिन है कि उस समय ऐनकोंडा को किसी और नाम से जाना जाता हो। मैंने अग्निपुराण नहीं पढ़ा,लेकिन कहते हैं की इसमें नागों की 80 प्रजातियों का जिक्र है।नाग पंचमी पर हमें जितने नाग,सपेरे और उनकी बीन याद आती है उतनी ही याद आती है चंदन चाचा के बाड़े की। क्योंकि हमारे पाठ्यक्रम में तब एक कविता थी -सूरज के आते भोर हुआ लाठी लेझिम का शोर हुआ यह नागपंचमी झम्मक-झम यह ढोल-ढमाका ढम्मक-ढम मल्लों की जब टोली निकली यह चर्चा फैली गली-गली दंगल हो रहा अखाड़े में चंदन चाचा के बाड़े में अब,मुश्किल ये है कि न चंदन चाचा का बाड़ा बचा और ढोल- धमाका न मल्लों की टोलियां बचीं और न अखाड़े। अब सबको सियासत ने लील लिया है। अब संघ की लाठियों और लेजमें का शोर है। मल्लों की जगह वोट लूटने वालों की टोलियां हैं और गली-गली में नेताओं के अखाड़ों की चर्चा है। बाल मन इस सबसे डरता है। हमारे पाठ्यक्रमों में चंदन चाचाओं की जगह गोडसे स्थापित किये जा रहे हैं। मेरा मन भटक रहा है इसलिए मै दोबारा से नागों यानि साँपों पर आता हूँ। कहते हैं कि सांप के पैर नहीं होते इसीलिए ये अफवाहों से भी तेज दौड़ लगा लेता हैं। सांप कभी सीधा नहीं चलता। सांप अपलक होता है यानि इसकी आँखें हमारी तरह झपकती नहीं हैं। इसके चूंकि पलकें होती ही नहीं इसलिए ये किसी के लिए पलक -पांवड़े नहीं बिछाता। सांप की अनेक विशेषताएं है। ये विषैले भी होते हैं और विषहीन ही लेकिन ज्यादतर सांप अपने विष के कारण ही मारे जाते हैं। दुनिया बड़ी है इसलिए साँपों का कुनवा भी बड़ा है,,दुनिया में ढाई -तीन हजार तरह के सांप पाए जाते है।एक अंगुल से लेकर 10 मीटर तक लंबा हो सकता है। भारत में 69 तरह के जहरीले साँपों का घर ह। इसमें से आधे जमीन पर रहते हैं और बाकी के पानी में सांप मांसाहारी है इसलिए आप उसे मुसलमान मत मान लेना सांप बेचारा हिन्दू है। हिन्दू देवी-देवताओं की सेवा करता है। भगवान शिव के गले में पड़ा रहता है। विष्णु का बिस्तर बन जाता है। कालानतर में जब सब कुछ बदला तो साँपों ने भी कुछ बदलाव स्वीकार किया। जब जंगल की जमीन पर कंक्रीट के जंगल उगने लगे,साँपों के बिल नष्ट किये जाने लगे तो साँपों ने अपना ठिकाना बदला सांप बिलों से निकलकर आस्तीनों में रने लगे। उनका रंग-रूप बदल गय। इन्हें पहचानना मुश्किल हो गया कि वे सांप हैं भी या नहीं ? आस्तीन का सांप एक गाली बन गया। कहावत में ढल गया। लेकिन हमने साँपों को पूजना बंद नहीं किया। अब पिटारियों में बंद सांप नहीं मिलते तो हम कागज पर सांप बनाकर उनकी पूजा करते है। मंदिरों में मौजूद पत्थर के साँपों कीपूजा करते हैं। और किसी धर्म में साँपों के पूजने का विधान हो तो मुझे नहीं पत। मेरा ज्ञान सीमित है। पाठक इसे बढ़ा सकते हैं। हमारे यहां कहावत है -घर आए नाग न पूजिए, बामी पूजन जाय । अर्थात हम ढोंगी लोग हैं। हमें अपने सनातनी होने पर फिर भी गर्व है। हम सांप पूजते रहेंगे। सभी तरह के सांप पूजे जायेंगे। चाहे वे बिलों में रहते हों या आस्तीनों में। सांप खूबसूरत भी होते हैं किन्तु उन्हें इस वजह से ओलम्पिक खिलाड़ियों की तरह निष्कासित नहीं किया जाता,मार दिया जाता है या किसी संग्रहालय में कैद कर दिया जाता है। खूबसूरती पता नहीं अभिशाप कैसे बन गयी ? इतिश्री। आप सभी को नाग पंचमी की शुभकामनायें। साँपों से बचें भी और साँपों को बचाएं भी। राकेश अचल