2024-10-02 16:27:16
घट स्थापन प्रातःकाल करें- सूर्योदय से 10.24 तक का समय श्रेयस्कर है सूर्योदय से दश घटी (चार घंटे) तक प्रातःकाल कहलाता है प्रातःकाल में ही देवी का आवाहन स्थापन विसर्जन अतिशय सुखद कहा है नक्षत्रादिक का कोई दोष हो तो अभिजित मुहूर्त भी श्रेष्ठ होता है अभिजित मुहूर्त 11.52 से 12.38 तक है जो सब दोषों का शमन करता है प्रातः द्विस्वभाव कन्या लग्न और अभिजित में धनु लग्न होने से घटस्थापना अतिशुभ कन्या राशि की सूर्य संक्रांति में नवरात्र आना जनता के लिए अतिशय कल्याणकारी वर्षों बाद घटस्थापना में चित्रा वैधृति आदि किसी प्रकार का कोई दोष वाक्य नहीं डोली पर सवार होकर सबका मंगल करने आ रही हैं इस बार मातारानी नवमी शनिवार को चरणायुध (मुर्गे) की सवारी पर प्रस्थान करेंगी मातारानी आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से लेकर महानवमी पर्यन्त किये जाने वाले दैवीय पूजा कर्म ही नवरात्र कहलाते हैं। तिथिक्षय या तिथिवृद्धि के कारण दिनों की संख्या न्युनाधिक हो सकती है। डामरकल्प में कहा है कि - तिथिवृद्धौ तिथिह्रासे नवरात्रमपार्थकम्।। वैसे शिष्टाचार है कि नवरात्र में तिथि की वृद्धि और श्राद्ध में तिथि का ह्रास शुभ होता है। नवरात्रों में अपनी कुल परम्परा को विशेष महत्व देना चाहिए। अपनी-अपनी कुल परम्परा के अनुसार ही व्रत उपवास स्तोत्र पाठ जप आदि के नियमों का पालन करना चाहिए। शक्ति सामर्थ्य होने पर भी कुल परम्परा से अधिक नहीं करें। नवरात्रों में देवी पूजा की ही प्रधानता है अन्य तो अंगीभूत कर्म हैं। अतः सभी जाति - धर्मानुरागियों को शुभमुहूर्त में घटस्थापन कर नवमी पर्यन्त देवी पूजा करनी चाहिए। नप्र व्रतखण्डे १९- यस्य यस्य हि या देवी कुलमार्गेण संस्थिता। तेन तेन च सा पूज्या नवरात्रे समन्वित:।। नानाविधै: सुकुसुमै: पूजयेत् कुलमातरम्।। सम्भव हो तो सभी को दिन में एक बार (एकभक्तव्रत) भोजन करना चाहिए अथवा रात्रि प्रदोषकाल में (नक्तव्रत) एक बार भोजन करें या उपवास रखते हुए नवरात्र करने चाहिएं। नवरात्रों में अष्टमी और नवमी के दिन व्रत उपवास का विशेष महत्त्व कहा है - इस दिन व्रतादि करने से जीवन में मनोभिलषित इच्छाओं की पूर्ति के साथ दीर्घायुष्य यशवृद्धि वंशवृद्धि राज्यलाभ और अनन्त धन सम्पदा की प्राप्ति होती है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को सूर्यसंक्रांति, प्रतिपदाक्षय, चित्रानक्षत्र, वैधृतियोग हो तो प्रतिपदा के प्रारम्भ की सोलह/बारह घटियां त्याज्य कही गयी हैं। वैसे ये सब अश्व नीराजनादि विषयक घट स्थापन में ही त्याज्य है। सामान्य नवरात्र में नहीं। नवरात्र प्रदीपे मनु: १६- चित्रा वैधृति सङ्क्रांतौ प्रतिपच्च क्षयं गता। तथा पूर्वयुता कार्या त्यक्वा षोडश नाडिका।। देवीपुराणे- आद्यास्तु नाडिकास्त्याज्या: षोडश द्वादशाऽपि वा। नवरात्र में देवीपूजार्थ घट स्थापना के लिए धर्मग्रन्थों की दृष्टि से प्रातःकाल का विशेष महत्व है। प्रश्न पैदा होता है कि नवरात्र स्थापन में प्रातःकाल किसे कहें? नवरात्र स्थापन में ऋषिजनों ने दिन के तीन विभाग ग्रहण किये हैं न कि दो चार पांच या पन्द्रह भाग। आदि का तीसरा भाग अर्थात् आद्य दस घटिकाओं को ही प्रातःकाल कहा गया है। पुरुषार्थ चिन्तामणौ 64- आदित्योदयमारभ्य यावत्तु दशनाडिका:। प्रातःकाल इति ख्यात: स्थापनारोपणादिषु।। अर्थात् अपने अपने स्थान के सूर्योदय से चार घंटे तक नवरात्र में देवी के स्थापन विसर्जनादि समस्त कार्य सम्पादित कर लेने चाहिएं। नप्रभविष्योत्तर पुराणे यथा १४ - प्रातरावाह्येद्देवीं प्रातरेव प्रवेशयेत्। प्रातः प्रातश्च सम्पूज्य प्रातरेव विसर्जयेत्।। कहा गया है - प्रातरेव संकल्प: कार्य: त्वदुक्तवचनात्। प्रातः ही शुभकाल है। ग्रन्थों में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को प्रतिपदा का भोग्यमान न्यूनानुसार सूर्योदय से तीन मुहूर्त (छः नाडी) या दो मुहूर्त (चार नाडी) भी शुभ कही गयी हैं। अर्थात् सूर्योदय से 144 मिनट बाद तक या 96 मिनट बाद तक भी घट स्थापन शुभ कहा गया है। विशेष रूप से तो सूर्योदय से चार घंटे अर्थात् दश घटी शुभ हैं ही। देवी की प्रतिष्ठा अर्थात् नवरात्र स्थापना द्विस्वभाव लग्न में भी शुभ कही गयी है। यथा द्वितनौ च देव्य: इस वाक्य से इस दिन द्विस्वभाव कन्या लग्न सूर्योदय 06.24 से 07.26 तक और धनु लग्न 12.02 से प्रारम्भ हो रहा है और अभिजित मुहूर्त भी 11.52 से 12.39 तक शुभ है। उक्त समय भी बहुत शुभफलकारक है। किसी भी प्राचीन धर्म ग्रन्थ में देवी आदि की पूजा के लिए चौघड़ियों और राहुकाल का शुभाशुभ फल देखने को नहीं मिलता है। किसी के पास कोई प्रमाण हों तो उपलब्ध करवाकर आभारित करावें। शरद ऋतु और वर्ष के आरम्भ में मां दुर्गा की महापूजा करनी चाहिए।- शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी। नवरात्र काम्य या नित्य कहे हैं। नवरात्रों का जीवन में कभी उद्यापन नहीं होता है। प्रतिपदा को नवरात्र की तैयारी करने के पश्चात शुभ मुहूर्त में ताम्र या मिट्टी का घट स्थापन करें। विशेष परिस्थितियों को छोड़कर अपराह्न और रात्रि में कलश स्थापना नहीं होता है।- नत्वपराह्ने न तु रात्रौ कलश पर, भित्ति चित्र पर या मण्डप में सुविधानुसार पराम्बा मां भगवती के चित्र पर ध्यान आवाहन करना चाहिए। क्योंकि नवरात्र में देवी पूजा की ही प्रधानता है।- अत्र देवी - पूजैवप्रधानम् देवी का आवाहन एवं घट स्थापन प्रतिपदा तिथि को ही शुभ है। अमावस्या-द्वितीया को नहीं। षडशीतिमुख संक्रान्ति - द्विस्वभाव लग्न मिथुन कन्या धनु और मीन को विशेष शुभ कहा गया है। मीन और मिथुन लग्न चैत्र नवरात्र में शुभ है। कन्या और धनु लग्न शारदीय नवरात्र में शुभ हैं। इसीलिए कन्या राशि के सूर्य को नवरात्र में शुभ माना है। कन्या राशि का सूर्य हो और कन्या राशि का ही चन्द्रमा हो तो शारदीय नवरात्र शुभ होते हैं। चित्रा नक्षत्र के आदि की बारह या षोडश घटियां छोड़कर सब शुभ हैं। कन्या और मीन लग्न गुप्त नवरात्र में देवीपूजार्थ विशेष रूप से ग्राह्य है। भविष्य पुराण में दुर्गापूजा के लिए सभी स्थानों को शुभ कहा है- गृहे गृहे शक्तिपरे ग्रामे ग्रामे वने वने। पूजनीया जनैर्देवी स्थाने स्थाने पुरे पुरे।। दुर्गापूजा करने के लिए हम सब भारतवासी अधिकारी हैं- स्नातै: प्रमुदितैर्हृष्टैर्ब्राह्मणै: क्षत्रियैर्नृपै:। वैश्यै: शुद्रैर्भक्ति युक्तैर्म्लेच्छैरन्यैश्च मानवै:।। विशेष पूजोपचार के अभाव में हम माता के श्री चरणों में श्रद्धा पूर्वक केवल पुष्प और जल चढ़ावें तो भी कार्य सिद्ध होंगे- गन्धं पुष्पं च धूपं च दीपं नैवेद्यमेव च। अभावे पुष्पतोयाभ्यां तदभावे तु भक्तित:।। नवरात्र में कलश स्थापन हर परिस्थिति में एक बजे पहले स्थापित हो जाना चाहिए। चित्रा के आद्य चतुर्थान्त त्याज्य है- आद्या षोडशनाडीस्तु लब्ध्वा य: कुरुते नर:। कलशस्थापनं तत्र ह्यरिष्टं जायते ध्रुवम्।। पुनश्च प्रातः ही देवी का आवाहन, प्रातः ही घर में या मण्डप में प्रवेश और प्रातः ही देवी का विसर्जन शुभ होता है- प्रातरावाहयेद् देवीं प्रातरेव प्रवेशयेत्। प्रातः प्रातश्च सम्पूज्य: प्रातरेव विसर्जयेत्।। महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती के विशेष स्थापन, पूजन, बलि और विसर्जन के आदेश सदैव अनुपालनीय है - मूलेषु स्थापनं देव्या: पूर्वाषाढासु पूजनम्। उत्तरासु बलिं दद्याद् श्रवणेन विसर्जयेत्।। इन शारदीय नवरात्र में यह पक्ष स्पष्ट है। दै.वि 311- 07 अक्टूबर को मध्याह्न व्यापिनी पंचमी जो पूर्वा ग्राह्य है उसमें उपांग ललिता व्रत। 09 अक्टूबर को प्रातः मूल नक्षत्र में मां सरस्वती का विशेष आवाहन। 10 अक्टूबर पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में मां सरस्वती का विशेष पूजन, 11 अक्टूबर उत्तराषाढा में सरस्वती के निमित्त बलिदान इसी दिन महाष्टमी को विशेष दुर्गापूजा, 12 अक्टूबर नवमी को महानवमी और नवरात्र विसर्जन आदि स्वयं प्रसिद्ध हैं। 11 अक्टूबर को महाष्टमी मध्य रात्रि में नवमीयुता है इस दिन मां भद्रकाली का अवतार हुआ था अतः मध्य रात्रि में पूजा का विशेष महत्व है। - अष्टमीयुक्तकाले तु निशार्धे शपरमेश्वरीम्।। समभ्यर्च्य बलिं दद्यात् सर्वाभिष्टफलाप्तये।। ये वचन भी विशेष हैं- अष्टमी नवमीयुक्ता नवमी चाष्टमीयुता। अतीव सा प्रशस्ता स्याद् देव्या: पूजनकर्मणि।। महानवमी- दुर्गापूजासु नवमी मूलाद् ऋक्षत्रयान्विता। महती कीर्तिता तस्यां दुर्गा महिषवाहिनी।। महानवमी बलिदाननिर्णय:- नवमी बलिदाने तु दशमीं तत्र वर्जयेत् हो सके तो अष्टमी को हवन प्रारम्भ करके नवमी में पूर्णाहुति, कन्या पूजन और नवरात्र विसर्जन करें। नवरात्र में मां के श्रृंगार नित्य पूजा आरती के दर्शन और अखण्ड ज्योति का भी विशेष महत्व है। 12 अक्टूबर को नवमी में ही प्रातः 11 बजे ही दशमी आ जाएगी। इसमें आयुध पूजा, अश्वादिक पालक पूजा, विजय मुहूर्त में विजया दशमी - दशहरा पर्व, शमी पूजा और अबूझ मुहूर्त में विशेष यात्रा आदि शुभ कहे गये हैं। विशेष - प्रधान पूजा हेतु माता की प्रतिमा कैसी हो का शास्त्रीय निर्णय:- चित्रे च प्रतिमायां च मृन्मय्यां श्रीफलेऽपि च। महायोनौ चन्द्रबिम्बे शिलायां कलशे तथा। पुस्तके पादुके खड्गे महाबिम्बे तथैव च।। तीर्थक्षेत्रे पुण्यक्षेत्रे गंगायाञ्च प्रपूजयेत्।। नवरात्र हेतु सभी के लिए कर्तव्य आदेश- स्वकुलाचारानुसारेण नवरात्रौ चण्डीपूजापाठादि कुर्यात्, ब्राह्मणद्वारा वा कारयेत्। विजयदशमी को करणीय कर्तव्यता- यात्रायां विजयकामोऽपराजितापूजामाचरेत्। विजयदशमी को नगरसीमा का उलंघन करके शमी वृक्ष का अर्चन करें- गृहित्वा साक्षतामार्द्रां शमीमूलगतां मृदम्। गीतवादित्र निर्घोषैरानयेत् स्वगृहं प्रति। ततो भूषणवस्त्रादि धारयेत् स्वजनै: सह।। विकल्प- शमीवृक्षाऽलाभे अश्मन्तकपूजा कार्या। नवरात्र में नित्य पूजा की सरल विधि:- 1. जयन्ती मंगला काली... या 2. सर्व मंगल मांगल्ये... मंत्र से 3. ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणि नवाक्षर मंत्र 4. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नवार्ण मंत्र आदि से भगवती का ध्यान आवाहन एवं सामग्री अर्पण करनी चाहिए। पूजन कर्म में कुल परम्परा को विशेष महत्व देना चाहिए। नित्य प्रति प्रार्थना करें कि- आदिमाया विश्वेश्वरी और आदिपुरुष परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना भी करते हैं कि वे हमें स्वस्थ और सुखी समृद्ध रखें। मां भगवती आधिदैहिक आधिदैविक और आधिभौतिक तापत्रयों से मुक्ति प्रदान करने के साथ हम सबकी समस्त अभिलाषाओं को सद्य परिपूर्ण कर सपरिवार सुखी, सफल, समृद्ध, सुदीर्घ नैरुज्यमय यशस्वी जीवन प्रदान करने की असीम कृपा करें। विशेष - हां इस दिन पूर्वाह्न काल में मातामह का श्राद्ध करना चाहिए। यदि श्राद्ध कर्म करें तो उनके श्राद्ध बाद ही घटस्थापना करनी चाहिए। और माता के लिए पृथक् भोग लगाएं। जीवन्नरः भद्रशतानि पश्यति