किसान को सरसोंचने का नहीं मिल रहा लाभकारी मूल्य

किसानों को एमएसपी से 1 हजार से ज्यादा प्रति क्विंटल तक का घाटा बाजार में हो रहा है। इसी प्रकार से किसानों को चना पर भी 1 हजार रुपए प्रति क्विंटल से ज्यादा का घाटा हो रहा है। एमएसपी से काफी कम सरसों का भाव मिलने के कारण किसान परेशान हैं।
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2023-07-19 13:09:54

-के. पी. मलिक देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलने और समय पर पूरी खरीद न होने से देश के कई राज्यों के किसान परेशान हैं। कम से कम राजस्थान में तो यही हो रहा है। समय पर पूरी खरीद न होने के चलते सरकार ने सरसों की खरीद की अवधि 10 दिन बड़ा कर 24 जुलाई तक कर दी। लेकिन अभी भी केंद्र सरकार की मूल्य समर्थन योजना के अंतर्गत प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान के प्रावधानों के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित कर दाने-दाने की खरीद नहीं हो रही है। न इसके हिसाब से खरीद की तारीख ही बढ़ाई गई है। किसानों को सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा है। किसानों को एमएसपी से 1 हजार से ज्यादा प्रति क्विंटल तक का घाटा बाजार में हो रहा है। इसी प्रकार से किसानों को चना पर भी 1 हजार रुपए प्रति क्विंटल से ज्यादा का घाटा हो रहा है। एमएसपी से काफी कम सरसों का भाव मिलने के कारण किसान परेशान हैं। सरसों खरीद का पैसा देने के लिए बैंक खाता में प्रत्यक्ष रुप से अंतरण करने का विकल्प ही चुना गया है, जबकि इसके संबंध मे किसानों की ओर से किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट द्वारा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं सहकारिता मंत्रालय संभाल रहे देश के गृहमंत्री अमित शाह को 25 जून को भी पत्र प्रेषित कर आग्रह किया गया था। जिसका विषय था, सरसों एवं चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के लिए सुनिश्चित करने हेतु । किसानों ने सरकार से मांग की है कि सरसों एवं चना जैसी तिलहन एवं दलहनों के लाभकारी दाम किसानों को दिलाने के लिए मूल्य समर्थन योजना चालू है, जिसके अंतर्गत साल 2018 से किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करने के लिए छत्रक योजना प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान प्रभाव में है‌। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि दलहन की उपजों पर कुल उत्पादन में से 25 फीसदी से अधिक खरीद नहीं करने के प्रतिबंध को उड़द, मसूर एवं अरहर के लिए तो समाप्त कर दिया गया। इसी प्रकार की आवश्यकता चना एवं मूंग की दलहन उपजों के संबंध में भी है। इन दोनों दलहनों सहित तिलहन उपजों में अभी यह प्रतिबंध चल रहा है। यह कि इस योजना में चना जैसी दलहन की उपजे खरीदने हेतु मूल्य समर्थन योजना के अंतर्गत विशेष प्रावधान किए हुए हैं। जिस में किसी भी किसान को अपना चना न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर बेचने की विवशता पर विराम लगाया हुआ है। सरसों जैसी तिलहन की उपजों के लिए कमी मूल्य भुगतान (पीडीपीएस) का प्रावधान किया हुआ है, जिसमें मूल्य समर्थन योजना के अंतर्गत न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद या भावांतर भुगतान योजना में से किसी भी विकल्प को राज्यों को चयन करने का अधिकार है। इसके आधार पर ही सूरजमुखी के संबंध में हरियाणा राज्य ने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करने की घोषणा की है, जिसमें दाने-दाने की खरीद होने तक इस व्यवस्था को चालू रखने का भी उल्लेख है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान में सरसों का उत्पादन देश के संपूर्ण उत्पादन का लगभग आधा है। पत्र में किसान महापंचायत ने मांग की है कि राजस्थान सरकार भी हरियाणा की सूरजमुखी की खरीद की तरह ही सरसों के दाने-दाने का न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से खरीदने की घोषणा करे। इसी प्रकार से राजस्थान में चने का उत्पादन 26 लाख 60 हजार 113 मीट्रिक टन है। इसमें से 25 फीसदी के खरीद के अनुसार राज्य सरकार ने खरीद का लक्ष्य 6 लाख 65 हजार 28 मीट्रिक टन निर्धारित किया हुआ है। लेकिन 20 जून तक की खरीदी महज 2 लाख 23 हजार 25 क्विंटल 20 किलो ही है, जो कि खरीद के लक्ष्य का महज 33.54 फीसदी एवं कुल उत्पादन का महज 8.38 फीसदी ही है। इसके अलावा चने का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5 हजार 335 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि बाजार में महज 4 हजार 200 रुपए प्रति क्विंटल तक का ही भाव मिल रहा है। इस प्रकार एक क्विंटल पर 1 हजार रुपए से अधिक का घाटा उठाकर किसान मजबूर होकर अपना चना बाजार में बेचने को किसान विवश हैं। यह तो स्थिति तब है जब भारत सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को गारंटीड मूल्य बताते हुए इससे कम दामों पर विक्रय के लिए किसान को विवश नहीं होने देने के लिए प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान के अंतर्गत चना जैसी दलहनों के लिए लाभकारी मूल्य देने का उल्लेख किया हुआ है। इसी तरह मार्च से मई तक किसानों द्वारा मंडियों में बेचीं गई सरसों कुल 1 करोड़ 20 लाख 90 हजार 458 क्विंटल है। सरसों का घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 5 हजार 450 प्रति क्विंटल है, जबकि बाजार में किसानों को एक क्विंटल सरसों के दाम 4 हजार 500 लेकर 5 हजार रुपए तक ही मिल पाया है। इस प्रकार से अगर किसानों को एक क्विंटल पर छह सौ रुपए का भी घाटा मानें, तब भी किसानों को 7 हज़ार 254 लाख रुपए का घाटा हुआ। दरअसल भारत सरकार की योजनानुसार जिन किसानों ने मंडी में अपनी उपज बेचीं हैं, उनको भावान्तर योजना में घाटे की भरपाई के लिए अन्तर राशि उनके खातों में अन्तरित किये जाने की आवश्यकता है। पत्र में कहा गया है कि उक्त तथ्य एवं परिस्थितियों में दलहन एवं तिलहन की 25 फीसदी से अधिक उपजों की खरीद पर लगे हुए प्रतिबंध को समाप्त करके सरकार चना तथा सरसों की खरीद अवधि अंतिम दाने की खरीद करे। और अगर इसमें सरकार को किसी प्रकार की बाधा हो, तो चना की खरीद अवधि को सरसों की खरीदी तारीख बढ़ाने की तरह 14 जुलाई तक करे, जो कि न्याय संगत होगा। किसानों ने इस मांग पत्र की प्रतियां राज्य के मुख्यमंत्री एवं सहकारिता मंत्री अशोक गहलोत, राजस्थान सरकार में मुख्य सचिव के अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र तोमर को भी भेजकर गुहार तो लगा चुके हैं। लेकिन अभी निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। दूसरी ओर बरसात का सीजन शुरू हो चुका है। इसलिए किसानो को अपनी फसलों के भंडारण करने में खासी तकलीफ से गुजरना पड़ रहा है। जानकारी के मुताबिक कई किसान मौसम की मार के चलते ओने पौने दामों पर अपनी फसलों को भेजने को मजबूर हैं किसानों का कहना है कि हमें आशा है कि केंद्र सरकार जल्दी इस मामले पर निर्णय लेगी। बहरहाल किसान संगठनों की मांग सिर्फ इतनी ही है कि किसानों को उनकी फसलों का भाव सही मिले, और अभी कम से कम वो मूल्य मिलना चाहिए, जो कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर खुद सरकार ने तय किया है। इसके साथ ही किसानों की फसलों की दाने-दाने की खरीद होनी चाहिए। हमारा राज्य की गहलोत सरकार से अनुरोध है कि सरकार किसानों की समस्याओं को समझे और उन्हें उनका हक दे, जिससे किसानों को घाटा न हो। आज जब बीज, खाद, कीटनाशक से लेकर हर चीज महंगी है और पिछले आठ-नौ सालों में दोगुने से तीन-चार गुनी तक फसलों पर लागत बढ़ गई है, तब ऐसे वक्त में किसानों को अगर एमएसपी के हिसाब से भी भाव नहीं मिलेगा और उनकी पूरी फसल नहीं खरीदी जाएगी, तो उनका गुजारा कैसे होगा। ऐसा न करने से तो पहले से कर्ज के बोझ में दबे किसान और कर्जे की दलदल में फंसते चले जाएंगे। इसलिए सरकार को इस विषय पर तत्काल ध्यान देते हुए इस पर शीघ्रता से फैसला सुनाना चाहिए, ताकि देश के किसानों के चेहरे पर छाई उदासी दूर हो सके। (लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं)

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